सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच का अहम फैसला, हर निजी संपत्ति को सरकारें अधिग्रहीत नहीं कर सकतीं
NewDelhi : हर निजी संपत्ति सामुदायिक संपत्ति नहीं हो सकती. कुछ खास संसाधनों को ही सरकारें सामुदायिक संसाधन मानकर इनका इस्तेमाल सार्वजनिक हित में कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने मंगलवार को यह कहते हुए बहुमत से अपना अहम फैसला सुनाया. जान लें कि डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में नौ […] The post सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच का अहम फैसला, हर निजी संपत्ति को सरकारें अधिग्रहीत नहीं कर सकतीं appeared first on lagatar.in.
NewDelhi : हर निजी संपत्ति सामुदायिक संपत्ति नहीं हो सकती. कुछ खास संसाधनों को ही सरकारें सामुदायिक संसाधन मानकर इनका इस्तेमाल सार्वजनिक हित में कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने मंगलवार को यह कहते हुए बहुमत से अपना अहम फैसला सुनाया. जान लें कि डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में नौ जजों की बेंच ने 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया. बेंच में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे.
Nine-judge bench of Supreme Court while delivering verdict on question whether State can take over private properties to distribute to subserve common good, holds all private properties are not material resources and hence cannot be taken over by states.
Supreme Court by the… pic.twitter.com/dehgHxuMD3
— ANI (@ANI) November 5, 2024
बेंच ने छह माह पहले फैसला सुरक्षित रख लिया था
बेंच ने छह माह पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और तुषार मेहता सहित कई वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. बेंच ने जस्टिस कृष्ण अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया. उस फैसले में कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों को राज्य सरकारें अधिग्रहीत कर सकती हैं.
सीजेआई ने पिछला फैसले को विशेष आर्थिक, समाजवादी विचारधारा से प्रेरित बताया. साथ ही कहा कि राज्य सरकारें उन संसाधनों पर दावा कर सकती हैं, जो भौतिक हैं और सार्वजनिक भलाई के लिए समुदाय द्वारा रखे जाते हैं.
16 याचिकाओं पर हुई थी सुनवाई
बता दें कि बेंच ने 16 याचिकाओं पर सुनवाई की थी, जिसमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (POA) द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी. POA ने महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डिवेलपमेंट एक्ट (MHADA) अधिनियम के अध्याय VIII-ए का विरोध किया था.
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