मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला, शरियत काउंसिल अदालत नहीं, तलाक सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकती

Chennai :  शरियत काउंसिल कोई अदालत नहीं है. यह एक निजी संस्था है. तलाक सर्टिफिकेट जारी करने और पेनाल्टी लगाने का अधिकार काउंसिल को नहीं है. यह कहते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को ट्रिपल तलाक मामले से जुड़ी सिविल रिविजन पिटिशन खारिज कर दी. पति को कोर्ट जाकर तलाक की मांग करनी होगी जस्टिस […] The post मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला, शरियत काउंसिल अदालत नहीं, तलाक सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकती appeared first on lagatar.in.

Oct 29, 2024 - 17:30
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मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला, शरियत काउंसिल अदालत नहीं, तलाक सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकती

Chennai :  शरियत काउंसिल कोई अदालत नहीं है. यह एक निजी संस्था है. तलाक सर्टिफिकेट जारी करने और पेनाल्टी लगाने का अधिकार काउंसिल को नहीं है. यह कहते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को ट्रिपल तलाक मामले से जुड़ी सिविल रिविजन पिटिशन खारिज कर दी.

पति को कोर्ट जाकर तलाक की मांग करनी होगी

जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कहा, यह काउंसिल पारिवारिक और आर्थिक परेशानियों को दूर करने में मदद कर सकती है, लेकिन तलाक सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकती. सुनवाई के क्रम में जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा, पति को कोर्ट जाकर तलाक की मांग करनी होगी. शरियत काउंसिल को इसका हक नहीं है.

मुस्लिम दंपती के तलाक से जुड़ा  मामला हाईकोर्ट के समक्ष आया था. दोनों ने 2010 में विवाह किया था.  कुछ साल बाद पति ने पत्नी को तलाक(ट्रिपल) दे दिया. साल 2017 में तमिलनाडु की तौहीद जमात (शरियत काउंसिल) ने इस दंपती को तलाक का सर्टिफिकेट जारी कर दिया.

 तलाक का सर्टिफिकेट मिलने पर पति ने दूसरी शादी कर ली

शरियत काउंसिल से तलाक का सर्टिफिकेट मिलने पर पति ने दूसरी शादी कर ली. उसके बाद पीड़ित पत्नी ने तिरुनेलवेली ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में तलाक सर्टिफिकेट के खिलाफ याचिका दायर की. याचिका घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत लगाई गयी. याचिका में कहा गया था   कि तीन तलाक उसके मामले में लागू नहीं होता.2021 में, मजिस्ट्रेट ने पीड़ित पत्नी के पक्ष में अपना फैसला सुनाया.

मजिस्ट्रेट ने पति को 5 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया

मजिस्ट्रेट ने पति को घरेलू हिंसा के लिए 5 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश जारी किया. साथ ही नाबालिग बच्चे की देखभाल के लिए 25,000 रुपए हर महीने देने को कहा.  कोर्ट के फैसले के खिलाफ पति ने सेशन कोर्ट में याचिका दायर की.  यह खारिज हो गयी. इसके खिलाफ पति ने मद्रास हाईकोर्ट में गुहार लगाई. लेकिन पति की याचिका हाईकोर्ट ने भी खारिज  कर दी.

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