लातेहार : एक ऐसा प्रत्याशी जो तख्ती टांगकर गली-गली मांगते हैं वोट

Ashish Tagore Latehar:  जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे- वैसे चुनाव का बुखार चढ़ता जा रहा है. प्रत्याशियों के प्रचार वाहन अब सड़कों पर नजर आने लगे हैं. इन वाहनों में प्रत्याशियों को विजयी बनाने को ले कर विशेष प्रकार के पेरोडी गाने बजाये जा रहे हैं. इन सब चकाचौंध के बीच […]

May 11, 2024 - 17:30
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लातेहार : एक ऐसा प्रत्याशी जो तख्ती टांगकर गली-गली मांगते हैं वोट

Ashish Tagore

Latehar:  जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे- वैसे चुनाव का बुखार चढ़ता जा रहा है. प्रत्याशियों के प्रचार वाहन अब सड़कों पर नजर आने लगे हैं. इन वाहनों में प्रत्याशियों को विजयी बनाने को ले कर विशेष प्रकार के पेरोडी गाने बजाये जा रहे हैं. इन सब चकाचौंध के बीच एक ऐसा भी प्रत्याशी नजर आ रहा है जो अपने कंधों पर एक तख्ती ले कर लोगों से उसे विजयी बनाने के लिए वोट अपील कर रहा है. हम बात कर रहे हैं श्रीराम सिंह डाल्टन की. श्रीराम डाल्टन और उनकी पत्नी मेघा डाल्टन शुक्रवार की देर शाम शहर के श्री वैष्णव दुर्गा मंदिर के समीप अपना चुनाव प्रचार करते दिखाई पड़े. बड़े ही सौम्य व मृद्आ वाज में उन्होने लोगों से उनके पक्ष मे वोट करने की अपील की. मूलरूप से पलामू ताल्लुख रखने वाले श्रीराम सिंह का नाता बॉलीवुड से भी है. उन्हें उनकी शॉर्ट फिल्म द लास्ट बहुरूपिया के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिल चुका है. उनकी पत्नी मेघा डाल्टन एक मशहूर सिंगर है. शुभम संदेश के वरीय संवाददाता आशीष टैगोर ने राह चलते उनसे बातचीत की. प्रस्तुत है प्रमुख अंश.

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सवाल- राजनीति में आने की मुख्य वजह क्या है.

जवाब- मै समाज के लिए कुछ करना चाहता हूं. नेतरहाट क्षेत्र में जल, जंगल और जमीन बचाने की आवाज बुलंद करता रहा हूं. मैंने वाराणसी विश्वविद्यालय से तालिम हासिल की है. मेरी दिली ख्वाहिश है कि हमारे क्षेत्र में भी शिक्षा के लिए इस प्रकार के विश्वविद्यालय की स्थापना होनी चाहिए. हमारे क्षेत्र मे नेतरहाट विद्यालय एक अच्छा विद्यालय है. वहां से काफी होनहार छात्र पढ़ कर निकलते हैं. नेतरहाट में पढ़ाई का एक माहौल है. वह क्षेत्र ध्वनि व अन्य प्रदूषण से दूर है. छात्र प्रकृति की गोद में शिक्षा ग्रहण करते हैं. मैं चाहता हूं कि नेतरहाट क्षेत्र में एक बीएसयू के तर्ज पर एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये. दूसरी प्राथमिकता मेरी स्वास्थ्य है. झारखंड में रिम्स ही एक मात्र बड़ा स्वास्थ्य संस्थान है. हालांकि मेरे माता और पिता दोनो की मृत्यु रिम्स में ही हुई है. रिम्स में तमाम संसाधनों के बावजूद जो कुव्यवस्था है, उसे ले कर मन में बहुत दुख है. चतरा क्षेत्र में स्वास्थ्य के क्षेत्र मे कुछ काम करना चाहता हूं, जो अन्य क्षेत्रों के लिए एक मॉडल हो.

सवाल- क्या बेरोजगारी और पलायन को आपने अपना मुद्दा बनाया है.

जवाब- मेरी तीसरी प्राथमिकता रोजगार है. देश दुनिया में झारखंड के मजदूरों को सस्ते मजदूर के रूप मे देखा जाता है. झारखंड के मजदूरों को उनके काम के हिसाब से सही दाम नहीं मिलता है. रोजगार के अभाव में झारखंड के युवा यहां से पलायन कर रहे हैं. बहुत ही दुख होता है जब देखता हूं कि जिस मां बाप ने अपने बच्चों का लालन पालन कर बड़ा किया, जब माता पिता को बच्चों की जरूरत होती है तब वे यहां से काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं. क्षेत्र में रोजगार की ऐसी व्यवस्था हो कि लोग यहां से पलायन नहीं करें. इसके लिए प्रयास करना चाहता हूं.

सवाल- आप 22 साल मुंबई में रहे, अचानक मुंबईं की चकाचौंध को छोड़ कर इस ओर कैसे आना हुआ.

जवाब- मेरा फेमिली बैकग्राउंड पलामू ही रहा है और मैने कभी अपनी मिट्टी से कटाव महसूस नहीं किया. मैने तय किया था कि 40-45 की अवस्था के बाद शिक्षा व अन्य चीजें ग्रहण कर लूंगा तो अपनी मिट्टी में लौट कर लोगों के लिए कुछ करूंगा. यही सोंच कर मैं यहां आया हूं.

सवाल- आप अपनी फिल्मी बैकग्राउंड के बारे में कुछ बतायें.

जवाब- मुझे मेरी शॉट फिल्म द लॉस्ट बहुरूपिया के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. इसके अलावा पर्यावरण पर आधारित मेरी फिल्म स्पिग थंडर को अमेरिका के फ्रेंसिस्को मे अंतरराष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया. इस फिल्म मे पर्यावरण के अलावा यहां के वंचित व गरीबों के सुख दुख की कहानी है. मैं यहां आर्ट व कल्चर के क्षेत्र में भी कुछ करना चाहता हूं.कहते हैं कि झारखंड में बोलने को ही गीत और चलने को ही नृत्य कहते हैं. यहां कला व संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करने की अपार संभावनायें हैं. यह भी लोगों को रोजगार दे सकता है.

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