लातेहार में 190 सालों से निकल रही है रथ यात्रा
Ashish Tagore Latehar: लातेहार में पिछले 190 सालों से भगवान जगन्नाथ, माता सुभ्रदा और भाई बलराम की रथ यात्रा निकाली जा रही है. इस बार भी रथ यात्रा की तैयारी कर ली गयी है. बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि साल 1833 से लातेहार के बाजारटांड़ के प्राचीन शिव मंदिर परिसर से रथ यात्रा निकल रही है. […]
Ashish Tagore
Latehar: लातेहार में पिछले 190 सालों से भगवान जगन्नाथ, माता सुभ्रदा और भाई बलराम की रथ यात्रा निकाली जा रही है. इस बार भी रथ यात्रा की तैयारी कर ली गयी है. बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि साल 1833 से लातेहार के बाजारटांड़ के प्राचीन शिव मंदिर परिसर से रथ यात्रा निकल रही है. प्राचीन शिव मंदिर के पुजारी मनोज दास शर्मा ने भी शुभम संदेश से बातचीत करते हुए बताया कि उनके पूर्वज महंत पूरनदास जी महाराज ने 1833 में प्राचीन शिव मंदिर से रथ यात्रा की शुरूआत की थी. प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास दो सौ वर्षों से भी पुराना है. वह अंग्रेजों का समय था. इसी समय बाजारटांड़ से रथ यात्रा निकालने की परंपरा शुरू की गयी.
महंत पूरन दास जी के निधन के बाद उनके वंशज महंत शरण दास, महंत जनक दास, महंत यदुवंशी दास ने रथ यात्रा निकालने की जिम्मेवारी संभाली. साल 1970 से महंत मुनी दास जी महाराज ने यह जिम्मेवारी संभाली. दिवगंत मुनी दास जी प्राचीन शिव मंदिर के पुजारी मनोज दास शर्मा जी के पिता हैं. पुजारी मनोज दास ने आगे बताया कि साल 1994 तक बाजारटांड़ परिसर से ही रथ यात्रा निकाली गयी. यहां से भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा व बलभद्र के विग्रहों को रथों पर आरूढ़ कराकर यह यात्रा निकाली जाती थी. नगर भ्रमण के बाद तीनों विग्रहों को धर्मपुर के मौसीबाड़ी ले जाया जाता था. नौ दिनों के बाद तीनों विग्रहों को पुन: बाजारटांड़ प्राचीन शिव मंदिर में लाया जाता था.
वर्ष 1995 से ठाकुरबाड़ी से निकाली जा रही है रथ यात्रा
शहर के ठीक बीचोबीच मेन रोड में अविस्थत ठाकुरबाड़ी का साल 1995 में जीर्णोद्धार किया गया. उसके बाद से रथ यात्रा यहां से निकाली जाने लगी. तब से मंदिर समिति के संरक्षक योगेश्वर प्रसाद सपत्नीक यहां रथ यात्रा के मौके पर भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और भाई बलराम की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. उन्होने बताया कि रथ यात्रा के एक दिन पहले नेत्र दान अनुष्ठान किया जाता है. आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से इस रथ यात्रा का आयोजन होता है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजते हैं. मान्यता है कि रथ यात्रा का साक्षात दर्शन करने भर से ही 1000 यज्ञों का पुण्य फल मिल जाता है.
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