लोहरदगा: बदलते भारत में विलुप्त हो रही है बैलों के घुंघरू की आवाज
Shakeel Ahmed Lohardaga: एक समय ऐसा भी था कि हर घर में बैलों की घुंघरू की आवाज सुनाई देती था. किसान खुद को काफी खुशकिस्मत समझते थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया वैसे-वैसे बैलों के घूंघरू की आवाज भी विलुप्त होने लगी है. गिने-चुने लोगों के यहां ही अब बैलों की जोड़ी दिखाई देती है. […]
Shakeel Ahmed
Lohardaga: एक समय ऐसा भी था कि हर घर में बैलों की घुंघरू की आवाज सुनाई देती था. किसान खुद को काफी खुशकिस्मत समझते थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया वैसे-वैसे बैलों के घूंघरू की आवाज भी विलुप्त होने लगी है. गिने-चुने लोगों के यहां ही अब बैलों की जोड़ी दिखाई देती है. बता दें कि बैलो के गले में जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं, जैसे गीत को गुनगुनाते ही खेती किसानी की याद तरोताजा हो जाती है, जी हां, इन दिनों धान की कटाई, मिसाई के साथ गेहूं की बोवाई का कार्य बड़े स्तर पर चल रहा है.
ऐसे में दो बैलों की जोड़ी के साथ खेती किसानी के कार्यो में मशगूल किसानों को देख हर कोई यह गीत गुनगुनाने को विवश हो जा रहा है. आधुनिक व वैज्ञानिक खेती के युग में मशीनी करण का उपयोग भले ही बढ़ गया हो, लेकिन आज भी गरीब किसान दो बैलों के सहारे खेती करने में लगा हुआ है. भले ही खेती के उपयोग में लिये जाने वाले बैलों की संख्या कम हो गई हो, दरवाजे से यह बैल विलुप्ति के कगार पर आ पहुंचा है. वहीं इनकी उपयोगिता को बनाये रखने में गरीब किसान अगली पंक्ति में खड़ा है.
गरीब किसानों की मजबूरी होने के साथ ही इनकी सख्या गिनी चुनी ही रह गई है. जबकि दरवाजे पर दो जोड़ी बैलों को बांधने का कार्य धनी किसान ही पहले करते थे. गरीबों के दरवाजे पर यह जोड़ीदार बैल नहीं देखे जाते थे. दरवाजे पर बंधे जोड़ीदार बैलों को देखकर ही लोग अंदाज लगा लेते थे कि यह निश्चित तौर पर धनी किसान होंगे. लेकिन अब धनी किसानों के दरवाजे पर जोड़ीदार बैलों की जगह खेती के आधुनिक मशीन ने जगह बना ली है. लोगों का कहना है कि समय चक्र ने ऐसी करवट ली की जोड़ीदार बैल अब गरीबों के दरवाजे की शोभा बन गये हैं. जोड़ीदार बैलों के सहारे हाड़तोड़ मेहनत कर गरीब किसान अपनी खेती को करने को विवश हैं.
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