सुप्रीम कोर्ट ने 1967 का फैसला खारिज किया, एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा अब तीन जजों की नयी बेंच तय करेगी
फैसले के अनुसार यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को नये सिरे से तय करने के लिए तीन जजों की नयी बेंच गठित की गयी है. कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा कि एएमयू सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. NewDelhi : अलीगढ़ मुस्लिम […] The post सुप्रीम कोर्ट ने 1967 का फैसला खारिज किया, एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा अब तीन जजों की नयी बेंच तय करेगी appeared first on lagatar.in.
फैसले के अनुसार यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को नये सिरे से तय करने के लिए तीन जजों की नयी बेंच गठित की गयी है. कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा कि एएमयू सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता.
NewDelhi : अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को फैसला सुनाया. फैसले के अनुसार यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को नये सिरे से तय करने के लिए तीन जजों की नयी बेंच गठित की गयी है. कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से दिये अपने फैसले में 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जो एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना था.
Supreme Court overrules 1967 verdict on Aligarh Muslim University minority status
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— ANI Digital (@ani_digital) November 8, 2024
#WATCH | Delhi | On SC verdict on the minority status of Aligarh Muslim University, senior advocate MR Shamshad says, “Aligarh Muslim University was established by minority and administered by minority – that’s what was contended and that has been the case of AMU since the… pic.twitter.com/ClFm3ymrd4
— ANI (@ANI) November 8, 2024
सीजेआई समेत चार जजों ने एकमत से फैसला दिया
कोर्ट ने कहा कि नयी बेंच एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मानदंड तय करेगी. जान लें कि सीजेआई समेत चार जजों ने एकमत से फैसला दिया है. तीन जजों ने डिसेंट नोट दिया है. सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा एकमत थे. जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अलग फैसला दिया.
अनुच्छेद 30ए के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक माने जाने के मानदंड क्या हैं?
सीजेआई का कहना था कि अनुच्छेद 30ए के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक माने जाने के मानदंड क्या हैं? कहा कि किसी भी नागरिक द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान को अनुच्छेद 19(6) के तहत विनियमित किया जा सकता है. अनुच्छेद 30 के तहत अधिकार निरपेक्ष नहीं है. अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के विनियमन की अनुमति अनुच्छेद 19(6) के तहत दी गयी है, बशर्ते यह संस्थान के अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन न करे. सीजेआई के अनुसार धार्मिक समुदाय कोई संस्था स्थापित तो कर सकता है, लेकिन उसका एडमिनिस्ट्रेशन नहीं कर सकता. विशेष कानून के तहत जिन संस्थानों की स्थापना हो उनको अनुच्छेद 31 के तहत कन्वर्ट नहीं किया जा सकता.
1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज के रूप में की गयी थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक संस्था को स्थापित करना था. बाद में, 1920 में इसे विश्वविद्यालय(अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया.
एएमयू सेंट्रल यूनिवर्सिटी, इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता
जान लें कि 1920 में 1951 और 1965 में एएमयू अधिनियम में हुए संशोधनों को कानूनी चुनौतियां दी गयी. इस कारण नया विवाद पैदा हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा कि एएमयू सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. कोर्ट के फैसले के अनुसार इसकी स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है, जिससे कि इसकी डिग्री की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके. अदालत का कहना था कि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रयासों का परिणाम तो हो सकता है लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं होगा कि विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने की थी.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 में संशोधन को खारिज किया था
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एएमयू की अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठा. इस फैसले से नाराज मुस्लिम समुदाय ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किया. इसके बाद 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन हुआ. हालांकि 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1981 में किये गये एएमयू संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया और रद्द कर दिया. इसके बाद 2006 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. हालांकि 10 साल बाद 2016 में केंद्र सरकार ने अपील करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है. इस क्रम मं 2019 में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने इस मुकदमे सात जजों की बेंच के हवाले कर दिया. जिस पर आज शुक्रवार 2024 को फैसला आया.
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