किरेन रिजिजू ने पीएम मोदी की ओर से पेश चादर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ दरगाह पर चढ़ाई
NewDelhi : केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने आज शनिवार को पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को भेजी गयी चादर अजमेर शरीफ दरगाह पर चढ़ाई. किरेन रिजिजू के साथ भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी भी मौजूद थे. बता दें कि पीएम मोदी की ओर से यह 11वीं बार […]
NewDelhi : केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने आज शनिवार को पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को भेजी गयी चादर अजमेर शरीफ दरगाह पर चढ़ाई. किरेन रिजिजू के साथ भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी भी मौजूद थे. बता दें कि पीएम मोदी की ओर से यह 11वीं बार अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर चादर पेश की गयी है.
गरीब नवाज की दरगाह पर जाना देश की पुरानी परंपरा है
आज सुबह केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू चादर लेकर जयपुर पहुंचे थे. यहां जयपुर एयरपोर्ट पर मीडिया से मुखातिब होते हुए किरेन रिजिजू ने कहा कि अजमेर में उर्स के दौरान गरीब नवाज की दरगाह पर जाना हमारे देश की पुरानी परंपरा है. पुलिस प्रशासन ने दरगाह में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये थे. इस क्रम में किरेन रिजिजू और जमाल सिद्दीकी ने दरगाह में चादर पेश करते हुए देश के लिए दुआ मांगी.
मोदी की ओर से भेजा गया संदेश पढ़कर जायरीनों को सुनाया
चादर पेश किये जाने के बाद दोनों ने दरगाह के बुलंद दरवाजे पर श्री मोदी की ओर से भेजा गया संदेश पढ़कर जायरीनों को सुनाया. संदेश में पीएम मोदी ने सभी को उर्स की मुबारकबाद देते हुए देश व दुनिया में अमन चैन व भाईचारे की कामना की. इससे पहले कल शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से अजमेर दरगाह को भेंट की गयी चादर लेकर किरेन रिजिजू और जमाल सिद्दीकी ने दिल्ली की निजामुद्दीन औलिया दरगाह व हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पहुंचे थे और जियारत की थी.
28 दिसंबर 2024 को अजमेर दरगाह पर झंडे की रस्म अदा की गयी थी
बता दें कि इससे पूर्व 28 दिसंबर 2024 को अजमेर दरगाह पर झंडे की रस्म अदा की गयी थी. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर झंडे की रस्म भीलवाड़ा का गौरी परिवार पूरा करता है. बताया जाता है कि 1928 से फखरुद्दीन गौरी के पीर-मुर्शिद अब्दुल सत्तार बादशाह ने झंडे की रस्म शुरु की थी. 1944 से लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी मिली. उनके निधन के बाद 1991 से उनके बेटे मोईनुद्दीन गौरी ने रस्म को पूरा किया. 2007 से फखरुद्दीन गौरी इस रस्म को निभा रहे हैं.
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