Adityapur: महिलाओं ने देव उठाउनी एकादशी के मौके पर जाना तुलसी विवाह का धार्मिक, आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व
Adityapur (Sanjeev Mehta) : आदित्यपुर में महिलाओं ने देव उठाउनी एकादशी के मौके पर तुलसी विवाह का धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व जाना. इस दौरान महिलाओं ने तुलसी विवाह पूजन किया और आचार्य पंडित डॉ. रमेश उपाध्याय शास्त्री से तुलसी विवाह का कथा श्रवण किया. पतिव्रता और भगवान् विष्णु की भक्त थीं जलंधर दैत्य की […] The post Adityapur: महिलाओं ने देव उठाउनी एकादशी के मौके पर जाना तुलसी विवाह का धार्मिक, आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व appeared first on lagatar.in.
Adityapur (Sanjeev Mehta) : आदित्यपुर में महिलाओं ने देव उठाउनी एकादशी के मौके पर तुलसी विवाह का धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व जाना. इस दौरान महिलाओं ने तुलसी विवाह पूजन किया और आचार्य पंडित डॉ. रमेश उपाध्याय शास्त्री से तुलसी विवाह का कथा श्रवण किया.
पतिव्रता और भगवान् विष्णु की भक्त थीं जलंधर दैत्य की पत्नी वृंदा
शास्त्री जी ने बताया कि श्री पद्मपुराण में तुलसी को पूर्व जन्म में जलंधर नामक दैत्य की पत्नी वृंदा बताया गया है. वृंदा पतिव्रता और भगवान् विष्णु की भक्त थी. लोकहित में भगवान विष्णु ने जालंधर का वध करने हेतु जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के सामने उपस्थित हुए और उसका ध्यान भंग कर सतीत्व धर्म को नष्ट कर दिया. इससे वृंदा ने भगवान् विष्णु को पत्थर होने का श्राप दिया. फलस्वरूप भगवान शालग्राम रूपी शिला बन गये. इसलिए इन्हें समस्त ब्रह्माण्डभूत नारायण (विष्णु) का प्रतीक माना गया. उन्होंने बताया कि भगवान शिव ने स्कंद पुराण के कार्तिक महात्म्य में शालिग्राम का महत्व वर्णित किया है.
भगवान विष्णु के वरदान से अगले जन्म में वृंदा को तुलसी का पौधा बनना पड़ा
शास्त्री जी ने आगे बताया कि भगवान विष्णु के वरदान से अगले जन्म में वृंदा को तुलसी का पौधा बनना पड़ा. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी को भगवान शालीग्राम और तुलसी का पारंपरिक रूप से विधिवत विवाह कराया जाता है जिसे तुलसी विवाह कहते हैं.
वृंदा की भक्ति और समर्पण ही तुलसी की पत्तियों में सुगंध बनकर आया
उन्होंने बताया कि भारतीय नारी तुलसी को सौभाग्यदायिनी मानकर उनकी पूजा और व्रत करती है. ऐसा कहा जाता है कि वृंदा की भक्ति और समर्पण ही तुलसी की पत्तियों में सुगंध बनकर आया है. बिना तुलसी के पत्ते के भगवान विष्णु, शालीग्राम, श्री कृष्ण आदि की पूजा नहीं होती है. उन्होंने बताया कि तुलसी विवाह होने के बाद ही भारतीय संस्कृति और ज्योतिष शास्त्र में विवाह का मुहूर्त प्राप्त होता है.
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