SC का बड़ा फैसला, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं पति से मांग सकती है गुजारा भत्ता

NewDelhi :   एक मुस्लिम व्यक्ति ने निचली अदालत (फैमली कोर्ट) के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने  उस व्यक्ति को अपनी तलाकशुदा पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. इस याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ […]

Jul 10, 2024 - 17:30
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SC का बड़ा फैसला, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं पति से मांग सकती है गुजारा भत्ता

NewDelhi :   एक मुस्लिम व्यक्ति ने निचली अदालत (फैमली कोर्ट) के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने  उस व्यक्ति को अपनी तलाकशुदा पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. इस याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ में आज बुधवार को सुनवाई हुई. इस दौरान अदालत ने मुस्लिम व्यक्ति की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है. महिला अपने पति के खिलाफ याचिका दायर करने की हकदार है. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर हावी नहीं होगा. न्यायमूर्ति नागरत्ना और न्यायमूर्ति मसीह ने अलग-अलग लेकिन सहमति वाले फैसले सुनाये. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर.

बेंच ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि अधिनियम की धारा 3 एक गैर-बाधा खंड से शुरू होती है. इस प्रकार यह धारा 125 CrPC के तहत पहले से ही प्रदान की गयी व्यवस्था के विपरीत नहीं है, बल्कि एक अतिरिक्त उपाय है. न्यायमूर्ति मसीह ने कहा कि यह अधिनियम रोक नहीं लगाता है. यह उस व्यक्ति की पसंद है, जिसने 125 के तहत आवेदन किया था. 1986 के अधिनियम के तहत कोई वैधानिक प्रावधान प्रदान नहीं किया गया है, जो कहता है कि 125 बनाये रखने योग्य नहीं है. इस पर सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 1986 के कानून में ऐसा कुछ भी नहीं था, जो एक उपाय को दूसरे के पक्ष में रोकता हो.

जब बेंच ने पूछा कि क्या मौजूदा याचिकाकर्ता ने इद्दत अवधि के दौरान प्रतिवादी (पत्नी) को कुछ भुगतान किया था. अधिवक्ता एमिकस ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता ने इद्दत अवधि के दौरान 15,000 रुपये का ड्राफ्ट पेश किया थ. लेकिन उनकी पत्नी ने इसका दावा नहीं किया था. इसके बाद बेंच ने कहा कि यह तब भी समझ में आता, अगर याचिकाकर्ता ने इद्दत अवधि के दौरान पत्नी के लिए प्रावधान किया होता, क्योंकि उस मामले में धारा 127(3)(बी) सीआरपीसी लागू हो सकती थी.

क्या है मामला?

अब्दुल समद नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट में शख्स ने दलील दी थी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है. महिला को मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम के प्रावधानों के तहत ही चलना होगा. जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल समद की याचिका खारिज कर दी और मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला सुनाया.

क्या है सीआरपीसी की धारा 125?

सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण को लेकर विस्तार से जानकारी दी गयी है. इस धारा के अनुसार  पति, पिता या बच्चों पर आश्रित पत्नी, मां-बाप या बच्चे गुजारे-भत्ते का दावा केवल तभी कर सकते हैं, जब उनके पास आजीविका का कोई और साधन उपलब्ध नहीं हो.

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