उद्योग जगत के ”रत्न” रतन टाटा के साथ एक युग का अंत

Lagatar Desk : उद्योग जगत के ”रत्न” रतन टाटा नहीं रहे. उनका बुधवार देर रात 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. इसके साथ ही एक युग का अंत हो गया. शोक में डूबे देश और दुनिया सादगी की मिसाल और दिखावे से दूर रहने वाल रतन टाटा को एक विजनरी लीडर, परोपकारी, राष्ट्र […] The post उद्योग जगत के ”रत्न” रतन टाटा के साथ एक युग का अंत appeared first on lagatar.in.

Oct 11, 2024 - 17:30
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उद्योग जगत के ”रत्न” रतन टाटा के साथ एक युग का अंत

Lagatar Desk : उद्योग जगत के ”रत्न” रतन टाटा नहीं रहे. उनका बुधवार देर रात 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. इसके साथ ही एक युग का अंत हो गया. शोक में डूबे देश और दुनिया सादगी की मिसाल और दिखावे से दूर रहने वाल रतन टाटा को एक विजनरी लीडर, परोपकारी, राष्ट्र निर्माता और वैश्विक कारोबारी के रूप में याद कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ने उनके योगदान और उनके द्वारा भारतीय उद्योग को दी गई दिशा की सराहना की. डॉ. सिंह ने कहा कि वह केवल एक व्यावसायिक आइकन नहीं थे, बल्कि उनकी दृष्टि और मानवता उनके जीवन में स्थापित कई चैरिटी कार्यों में झलकती है.

रतन टाटा ने कई ऐसे फैसले लिए जिनका सीधा असर असर भारतीयों के जीवन पर पड़ा. वहीं टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने कहा कि रतन टाटा के नेतृत्व ने यह सुनिश्चित किया कि समूह की वृद्धि तीव्र गति से जारी रहे. साथ ही वह अपनी नैतिक कसौटी पर भी खरा उतरे. उन्होंने एक बयान में कहा कि टाटा समूह के लिए, रतन टाटा एक अध्यक्ष से कहीं अधिक थे। मेरे लिए, वे एक मार्गदर्शक और मित्र थे. उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत कर हमें प्रेरणा दी. उत्कृष्टता, अखंडता और नवाचार के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के साथ, टाटा समूह ने उनके नेतृत्व में अपने वैश्विक पदचिह्न का विस्तार किया. वे हमेशा अपने नैतिक मानदंडों के प्रति सच्चे रहे. रतन टाटा भले ही अब हम सब के बीच नहीं रहे, लेकिन वे अपने पीछे एक बड़ी विरासत छोड़ गए हैं, जो हमें और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी.

ग्रुप कायापलट के साथ ऐसे किया विस्तार

देश के शीर्ष कारोबारी रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर,1937 को मुंबई में हुआ था. रतन टाटा ने शुरुआती पढ़ाई मुंबई से करने के बाद 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद वह एक युवा कार्यकारी के रूप में टाटा समूह में शामिल हुए थे. 1962 के अंत में भारत आने से पहले उन्होंने लॉस एंजिल्स में जोन्स और एमोंस के साथ कुछ समय तक काम किया और फिर टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया. विभिन्न कंपनियों में सेवा देने के बाद, उन्हें 1971 में नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया और बाद में 1975 में उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में उन्नत प्रबंधन कार्यक्रम पूरा किया.1981 में उन्हें समूह की दूसरी होल्डिंग कंपनी टाटा इंडस्ट्रीज का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने ग्रुप में कई अहम बदलाव किए और नई टेक्नोलॉजी वाले बिजनेस पर फोकस किया. अपने विनम्र व्यवहार और मजबूत व्यावसायिक कौशल के लिए प्रसिद्ध रतन टाटा ने 1991 से 28 दिसंबर, 2012 को अपनी सेवानिवृत्ति तक टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया.

दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो की शुरुआत

टाटा संस के अध्यक्ष के पद पर अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कंपनी को विविधीकरण और वैश्वीकरण की ओर निर्देशित किया. उनके नेतृत्व में समूह ने इस्पात, ऑटोमोबाइल, सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार किया. टाटा की बड़ी उपलब्धियों में से एक 2008 में टाटा नैनो की शुरुआत थी. दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में लाई गई, नैनो का उद्देश्य भारत के बढ़ते मध्यम वर्ग के लिए सुरक्षित और किफायती परिवहन प्रदान करना था. उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप का राजस्व 100 बिलियन डॉलर (2011-2012) से अधिक हो गया था. भारत सरकार ने 2008 में टाटा को अपने दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार, पद्म विभूषण से सम्मानित किया. उन्हें कई अन्य पुरस्कार, सम्मान, कई भारतीय और वैश्विक विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट और अन्य सम्मान भी मिले.

रतन टाटा ने अपने जीवनकाल में अलग-अलग समय पर टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पावर, टाटा ग्लोबल बेवरेजेज, टाटा केमिकल्स, इंडियन होटल्स और टाटा टेलीसर्विसेज सहित प्रमुख टाटा कंपनियों के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था. वे भारत और विदेशों में विभिन्न संगठनों से भी जुड़े रहे और मित्सुबिशी कॉरपोरेशन और जेपी मॉर्गन चेस के अंतरराष्ट्रीय सलाहकार बोर्ड में काम किया. टाटा 2012 में टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में अपने पद से सेवानिवृत्त हुए, लेकिन विभिन्न परोपकारी और व्यावसायिक उपक्रमों में सक्रिय रहे. उनके परोपकारी कार्यों को कई पुरस्कारों के माध्यम से मान्यता मिली, जिनमें पद्म भूषण और पद्म विभूषण शामिल हैं, जो भारत के दूसरे और तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान हैं. सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने अंतिम समय तक सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाया. इस दौरान उन्होंने कई नए स्टार्टअप और शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहित किया.

देश और समाज के प्रति था जिम्मेदारी का गजब भाव

रतन टाटा ने नमक लेकर एयरलाइंस तक में भारत को आत्मनिर्भर बनाया. समाज के प्रति जिम्मेदारी का भाव कूट-कूट कर भरा था. यह बात उनके सोशल पोस्ट से भी जाहिर होती है. टाटा ने अपने इन पोस्ट में देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अत्यधिक गंभीरता से प्रस्तुत किया. रतन टाटा जब इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती थे, तब भी वह लोगों के बारे में सोच रहे थे, ऐसा उनके एक्स पोस्ट से साबित होता है. उन्होंने एक्स पर अपने अंतिम पोस्ट में लिखा था, “मैं अपने स्वास्थ्य के बारे में हाल ही में फैली अफवाहों से अवगत हूं और सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि ये दावे निराधार हैं. मैं वर्तमान में अपनी उम्र और संबंधित चिकित्सा स्थितियों के कारण चिकित्सकीय जांच करवा रहा हूं. चिंता का कोई कारण नहीं है. मैं अच्छे मूड में हूं और अनुरोध करता हूं कि जनता और मीडिया गलत सूचना फैलाने से बचें.”

बेजुबानों को लेकर भी रतन टाटा फिक्रमंद रहते थे

बेजुबानों को लेकर भी रतन टाटा फिक्रमंद रहते थे. यही वजह है कि टाटा ट्रस्ट्स स्मॉल एनिमल हॉस्पिटल खोला गया. 1 जुलाई को उद्योगपति रतन टाटा ने मुंबई में अपनी पसंदीदा परियोजना टाटा ट्रस्ट्स स्मॉल एनिमल हॉस्पिटल का शुभारंभ किया. अस्पताल के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर इस रोमांचक खबर को साझा किया गया था. रतन टाटा देशवासियों को समय-समय पर अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास कराते रहते थे. लोकसभा चुनाव के दौरान मुंबईवासियों से अपील की कि लोकतंत्र के इस महापर्व में शामिल हों. 18 मई के एक्स पोस्ट में लिखा था,”सोमवार को मुंबई में मतदान का दिन है. मैं सभी मुंबई वासियों से आग्रह करता हूं कि वे घर से बाहर निकलें और जिम्मेदारी से मतदान करें.” एक अन्य पोस्ट में जानवरों के प्रति उनका असीम प्रेम देखने को मिला. बेजुबान की तस्वीर शेयर कर लिखा, “अब जबकि मानसून आ गया है, बहुत सी आवारा बिल्लियां और कुत्ते हमारी कारों के नीचे शरण लेते हैं. आवारा जानवरों को चोट लगने से बचाने के लिए, कार को चालू करने और तेज करने से पहले उसके नीचे जांच करना जरूरी है. अगर हम अपने वाहनों के नीचे उनकी मौजूदगी के बारे में नहीं जानते हैं, तो वे गंभीर रूप से घायल हो सकते हैं, विकलांग हो सकते हैं और यहां तक कि मारे भी जा सकते हैं. अगर हम इस मौसम में बारिश के दौरान उन्हें अस्थायी आश्रय दे सकें, तो यह दिल को छू लेने वाला होगा.” कोरोना महामारी के दौरान की अगर हम बात करें तो जब देश के लोग मुश्किल समय में थे, लोग सड़कों पर भूखे मरने को मजबूर थे, तब रतन टाटा ने आगे आकर लोगों की मदद की और 1500 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की. इस मुश्किल समय में वह अपने कर्मचारियों के साथ-साथ पूरे देश के लिए खड़े रहे थे.

रतन टाटा ने भारत ब्रांड को विश्व पटल पर ले जाने में निभाई अहम भूमिका

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के डायरेक्टर जनरल, चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि बड़े कद के बावजूद उनका सौम्य और दयालु स्वभाव प्रेरणादायक और दुर्लभ था. बनर्जी ने आगे कहा कि सीआईआई में उनकी सलाह हमेशा व्यावहारिक थी और उन्हें भारतीय बिजनेस की क्षमता पर भरोसा था. उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि कैसे भारतीय कंपनियां एक मजबूत राष्ट्र बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है. लगभग दो दशकों तक सीआईआई की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य के रूप में रतन टाटा इंडस्ट्री चैंबर के लिए एक मार्गदर्शक बने रहे. उन्होंने वास्तव में भारतीय उद्योग के लिए आगे का रास्ता बनाया और वैश्विक स्तर पर पहुंचाया. सीआईआई, एक महान लीडर के निधन पर टाटा ग्रुप के साथ है और गहरा शोक व्यक्त करता है. एसोचैम के महासचिव दीपक सूद ने कहा कि रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के कारोबार को दुनिया के विभिन्न देशों में फैलाने के साथ भारत ब्रांड को भी विश्व पटल पर विभिन्न सेक्टरों जैसे आईटी, ऑटोमोबाइल, स्टील और हॉस्पिटैलिटी में ले जाने का काम किया है. सूद ने आगे कहा कि उनका जीवन भारत के उद्यमियों के लिए वैश्विक स्तर पर सोचने और आगे बढ़ने, एक बेदाग प्रतिष्ठा और कॉर्पोरेट प्रशासन के बहुत उच्च मानक को बनाए रखने के लिए एक प्रेरणा है. कई स्टार्टप्स को आगे बढ़ाने का श्रेय भी रतन टाटा को दिया जाता है. ईईपीसी इंडिया के अध्यक्ष अरुण कुमार गरोडिया ने कहा कि रतन टाटा अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं, जो कि आने वाले समय में नई पीढ़ी को प्रेरणा देने का काम करेगी. आगे कहा कि अपने कई दशकों के लंबे और शानदार करियर में अच्छे कारोबारी होने के अलावा रतन टाटा एक विनम्र इंसान थे, जो कि पद और प्रतिष्ठ देखे बिना हर किसी का सम्मान करते थे.

शोक में डूबा उद्योग जगत, पिचाई बोले- हमेशा भारत की बेहतरी के लिए किया काम

दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन ने उद्योग जगत को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई से लेकर महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा तक, प्रमुख कारोबारी नेताओं ने रतन टाटा के निधन पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं. रतन टाटा के साथ अपनी आखिरी मुलाकात को याद करते हुए सुंदर पिचाई ने कहा कि टाटा ग्रुप के चेयरमैन “भारत को बेहतर बनाने के बारे में गहराई से सोचते थे”. गूगल के सीईओ ने एक्स पोस्ट में लिखा, “रतन टाटा के साथ गूगल में मेरी आखिरी मुलाकात में हमने वेमो (गूगल की सेल्फ ड्राइविंग कार कंपनी) की प्रगति के बारे में बात की. उनको सुनना प्रेरणादायक था. वह एक असाधारण व्यवसाय और परोपकारी विरासत छोड़ गए हैं. भारत में आधुनिक व्यवसाय नेतृत्व को मार्गदर्शन देने और विकसित करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह भारत की बेहतरी को लेकर संजीदा थे. उनके प्रियजनों के प्रति गहरी संवेदना और रतन टाटा जी की आत्मा को शांति मिले.” महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने कहा कि वे “रतन टाटा की इस अनुपस्थिति को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं.” उन्होंने ने एक्स प्लेटफॉर्म पर लिखा “भारत की अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक छलांग लगाने के कगार पर खड़ी है. रतन टाटा के जीवन और काम का हमारी इस स्थिति में बहुत बड़ा योगदान है. इसलिए, इस समय उनका मार्गदर्शन अमूल्य होता,” उन्होंने आगे कहा, “उनके चले जाने के बाद, हम केवल उनके उदाहरण का अनुसरण करने के लिए प्रतिबद्ध हो सकते हैं. वह एक ऐसे व्यवसायी थे जिनके लिए वित्तीय संपदा और सफलता तब सर्वाधिक उपयोगी थी जब उसे वैश्विक समुदाय की सेवा में लगाया जाता था.”

रतन टाटा के साहस और योगदान को पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने किया याद

रतन टाटा के निधन से देश भर में शोक की लहर है. उनके निधन पर राजनीति से लेकर उद्योग जगत और फिल्म जगत के दिग्गजों ने शोक व्यक्त किया है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी रतन टाटा के निधन पर संवेदनाएं व्यक्त की. मनमोहन सिंह ने टाटा संस के चेयरमैन नटराजन चंद्रशेखरन को पत्र लिखकर रतन टाटा के निधन पर अपनी गहरी शोक संवेदनाएं व्यक्त की. चंद्रशेखरन को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने लिखा- “रतन टाटा के निधन से अत्यंत दुखी हूं. वह भारतीय उद्योग के एक महान नेता थे. वह केवल एक व्यावसायिक आइकन नहीं थे, बल्कि उनकी दृष्टि और मानवता उनके जीवन में स्थापित कई चैरिटी कार्यों में झलकती है. उन्होंने आगे कहा कि वह सच्चाई कहने का साहस रखते थे. उनमें सत्ता में बैठे लोगों से सच बोलने का साहस था. मुझे उनके साथ कई मौकों पर बहुत करीब से काम करने के पल याद हैं. मैं इस दुखद अवसर पर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं. उनकी आत्मा को शांति मिले. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रतन टाटा के निधन पर संवेदनाएं व्यक्त की. पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मुझे रतन टाटा के साथ अनगिनत बातचीत याद आ रहे हैं. जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था तो मैं उनसे अक्सर मिलता था. हम विभिन्न मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करते थे। मुझे उनका दृष्टिकोण बहुत समृद्ध लगा. जब मैं दिल्ली आया तो यह बातचीत जारी रही. उनके निधन से बेहद दुख हुआ. इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों के साथ हैं.”

पहला प्यार ने छोड़ा हाथ, रतन टाटा के विवाह न करने की वजह रही खास

भारतीय उद्योग के जगत में रतन टाटा व्यावसायिक दृष्टिकोण और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के लिए जाने जाते हैं. हालांकि, उनकी निजी जिंदगी का एक पहलू जो अक्सर चर्चा का विषय रहा है और वह है उनका अविवाहित रहना. साल 1937 में 28 दिसंबर को रतन टाटा का जन्म पारसी परिवार में हुआ था. उनके दादा जमशेदजी टाटा ने टाटा ग्रुप की नींव रखी थी, जिसे रतन टाटा ने आगे बढ़ाने का संकल्प लिया. रतन टाटा की शुरुआती शिक्षा मुंबई में हुई. इसके बाद वो अमेरिका चले गए, यहां उन्होंने आर्किटेक्चर की पढ़ाई की. फिर मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल का रुख किया. उनके शिक्षित और सक्षम होने का गुण उनके करियर में भी झलकता है. 1962 में रतन टाटा ने टाटा समूह में काम करना शुरू किया. बाद में, वह टाटा ग्रुप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे. साल 1991 में उन्होंने टाटा समूह के अध्यक्ष का पद संभाला और अपने नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया. देश की मशहूर शख्सियत, नामी परिवार, अथाह पैसा फिर भी रतन टाटा अविवाहित रहे तो आखिर वजह क्या है? इससे जुड़े सवाल कई बार और बार बार पूछे जाते रहे. तो हकीकत ये है कि रतन टाटा को प्यार हुआ था. एक बार नहीं चार बार. लॉस एंजिल्स में मिली लड़की से तो बात शादी तक पहुंच गई थी लेकिन वो हो न सका और प्यार अधूरा रह गया. एक इंटरव्यू में रतन टाटा ने बताया था कि लॉस एंजिल्स स्थित एक आर्किटेक्चर फर्म में काम करने के दौरान एक लड़की से वह मिले और देखते ही देखते उन्हें प्यार हो गया. उस लड़की के साथ शादी करके टाटा सेटल होना चाहते थे, लेकिन इसी बीच उन्हें अपनी बीमार दादी की देखभाल के लिए भारत आना पड़ा और फिर वह वापस नहीं जा सके.

इस दौरान सोचा कि वो लड़की भारत आ जाए लेकिन तभी भारत-चीन के बीच जंग छिड़ गई और उस प्रेमिका के माता पिता ने भारत नहीं भेजा. नतजीतन रिश्ता टूट गया. ऐसा टूटा कि फिर कभी जुड़ नहीं पाया. टाटा का नाम सिमी ग्रेवाल संग भी जुड़ा. सिमी के टॉक शो में टाटा ने ऐसा ही कुछ कहा भी था. बताया था, कैसे वह एक बार उनके साथ समुद्र तट पर टहल रहे थे और उस पल की शांति ने उन्हें काम से जुड़ी टेंशन से मुक्त कर दिया था. खुद ग्रेवाल ने भी एक मीडिया समूह से अपने संबंधों का खुलासा किया था. खैर ब्रेक अप्स के बाद भी रतन टाटा ने उद्योग जगत में तहलका मचाए रखा. समाज सेवा को प्राथमिकता दी. टाटा ट्रस्ट के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण विकास में योगदान जारी रखा. उन्होंने अपने करियर और समाज सेवा को प्राथमिकता दी. उनकी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि उन्होंने व्यक्तिगत संबंधों की बजाय अपने व्यवसाय और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दी. उनका मानना था कि व्यक्तिगत रिश्तों से अधिक महत्वपूर्ण है समाज की सेवा करना. रतन टाटा ने अपनी ऊर्जा और समय को उन प्रोजेक्ट्स में लगाना उचित समझा, जो समाज के लिए लाभकारी हो.

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