मां सिद्धिदात्री देती हैं यश-बल-धन, कन्या पूजा करने से कष्टों का होता है निवारण

मां सिद्धिदात्री को लगाये तिल का भोग, सिद्धि और मोक्ष की होगी प्राप्ति बुरे कर्मों से लड़ने की शक्ति देती हैं मां सिद्धिदात्री LagatarDesk :  शारदीय नवरात्रि का आज अंतिम दिन है. इस दिन मां दुर्गा के नौंवे स्वरुप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. शास्त्रों के अनुसार, मां सिद्धिदात्री को सिद्धि और मोक्ष […] The post मां सिद्धिदात्री देती हैं यश-बल-धन, कन्या पूजा करने से कष्टों का होता है निवारण appeared first on lagatar.in.

Oct 11, 2024 - 17:30
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मां सिद्धिदात्री देती हैं यश-बल-धन, कन्या पूजा करने से कष्टों का होता है निवारण
  • मां सिद्धिदात्री को लगाये तिल का भोग, सिद्धि और मोक्ष की होगी प्राप्ति
  • बुरे कर्मों से लड़ने की शक्ति देती हैं मां सिद्धिदात्री

LagatarDesk :  शारदीय नवरात्रि का आज अंतिम दिन है. इस दिन मां दुर्गा के नौंवे स्वरुप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. शास्त्रों के अनुसार, मां सिद्धिदात्री को सिद्धि और मोक्ष की देवी माना जाता है. इनकी जो भक्त मां के इस स्वरूप की अराधना करता है, उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से यश, बल और धन की भी प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं जो भक्त सच्चे मन से पूजा करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

माता सिद्धिदात्री की अराधना से प्राप्त होती हैं आठ सिद्धियां

धार्मिक मान्याताओं के अनुसार, मां सिद्धिदात्री के पास आठ सिद्धियां अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व हैं. माता सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं. मां के चार हाथ हैं. मां ने एक हाथ में शंख, दूसरे में गदा, तीसरे में कमल का फूल और चौथे में च्रक है. मां सिद्धिदात्री को माता सरस्वती का रूप भी माना जाता है. मां सिद्धिदात्री की पूजा करते समय बैंगनी या जामुनी रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है. यह रंग अध्यात्म का प्रतीक होता है. मां सिद्धिदात्री को तिल बहुत प्रिय है. इसलिए उन्हें तिल या तिल से बने सामान का भोग लगाया जाता है. महानवमी पर मां सिद्धिदात्री को अनार का भोग लगाना चाहिए. महानवमी के दिन अनाज का भोग भी लगाया जाता है. मां को प्रसन्न करने के लिए हलवा, चना-पूरी, खीर और पुआ चढ़ा सकते हैं. ऐसा करने से मां सिद्धिदात्री अनहोनी से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं.

सभी देवताओं के तेज उत्पन्न करने से मां सिद्धिदात्री की हुई थी उत्पति

अत्यन्त प्राचीनकाल में भगवान महादेव ने कठिन तपस्या कर मां सिद्धिदात्री से आठों सिद्धियां प्राप्त की थी. माता की कृपा से ही महादेव का आधा शरीर देवी की तरह हो गया था. जिसके बाद महादेव का अर्धनारीश्वर नाम पड़ा. हिंदू धर्म के अनुसार, जब महिषासुर ने अत्याचारों की अति कर दी थी. तब सभी देवतागण भगवान शिव और प्रभु विष्णु के पास मदद मांगने गये थे. महिषासुर का अंत करने के लिए सभी देवताओं ने तेज उत्पन्न किया. जिससे मां सिद्धिदात्री की उत्पति हुई थी. इसलिए इनकी पूजा करने से बुरे कर्मों से लड़ने की शक्ति मिलती है.

मां सिद्धिदात्री बीज मंत्र

हीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः।

मां सिद्धिदात्री की आरती

जय सिद्धिदात्री मां, तू सिद्धि की दाता। तू भक्तों की रक्षक, तू दासों की माता। तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि। कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जब भी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम। तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है। रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो। तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे। तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया। सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली। हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा। मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।

नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व

नवरात्र के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री पूजा के बाद कन्या पूजन किया जाता है. इस दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है. इसे कंजक खिलाना भी कहते हैं.  बिना कन्या पूजन के बिना व्रत-पूजन का फल नहीं मिलता है. इस दिन 9 कुंवारी कन्याओं और एक भैरव बाबा की पूजा की जाती है. कन्याओं के पैर धोकर उन्हें लाल चुनरी ओढ़ाएं. फिर रोली-तिलक लगाकर कलेवा बांधे. फिर मंत्र द्वारा पंचोपचार पूजन करें. इसके बाद सभी कन्याओं को प्रसाद खिलाया जाता है. भोजन कराने के बाद भेंट और दक्षिणा देकर पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है. कन्या और बटुक की पूजा से देवी दुर्गा बेहद प्रसन्न होती हैं. नवमी के दिन शुभ मुहूर्त में कन्या पूजन करने से दोगुना फल मिलता है.

एक ही रखा जायेगा अष्टमी और नवमी का व्रत 

पंचांग के अनुसार, इस बार अष्टमी और नवमी तिथि एक दिन ही पड़ रही है. अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर को दोपहर 12.31 बजे से शुरू हो रही है, जो अगले दिन 11 अक्टूबर को दोपहर 12.06 बजे समाप्त होगी. वहीं नवमी तिथि 11 अक्टूबर को दोपहर 12.06 बजे से शुरू होकर 12 अक्टूबर की सुबह 10.57 बजे पर समाप्त होगी. उदयातिथि के आधार पर 11 अक्टूबर को ही अष्टमी और नवमी दोनों का व्रत रखा जायेगा. कन्या पूजन का मुहूर्त सुबह 10.41 बजे तक है. सुबह 10.41 बजे से दोपहर 12.08 बजे तक राहु काल रहेगा. महा अष्टमी के दिन 11 अक्टूबर को कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह लाभ चौघड़िया में 7 बजकर 46 मिनट से 10 बजकर 40 मिनट तक रहेगा. वहीं नवमी तिथि के दिन यानी 12 अक्टूबर को कन्या पूजन का शुभ चौघड़िया सुबह 7 बजकर 50 मिनट से 9 बजकर 14 मिनट तक होगा.

उम्र के हिसाब से कन्या पूजन का लाभ

  • 2 साल – 2 वर्ष की कन्या को कुमारी कहा जाता है. इनकी पूजा से दुख, दरिद्रता दूर होती है. खुशियों का आगमन होता है
  • 3 साल – तीन साल की कन्या त्रिमूर्ति कहलाती हैं. इनके पूजन से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्त होता है. वंश में वृद्धि होती है.
  • 4 साल – चार वर्ष की कन्या को कल्याणी कहा जाता है. इनकी उपासना से बुद्धि, विद्या में बढ़ोत्तरी और राज सुख मिलता है.
  • 5 साल – पांच साल की कन्या रोहिणी के रूप में जानी जाती हैं. इनकी आराधना से गंभीर रोगों का नाश होता है.
  • 6 साल – 6 साल की बच्चियां कालिका का रूप मानी जाती है. इनकी पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति मिलती है.
  • 7 साल – साल वर्ष की कन्या चंडिका कहलाती हैं. इस स्वरूप की उपासना से धन और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है.
  • 8 साल – आठ साल की कन्या देवी शांभवी का स्वरूप होती है. इनके पूजन से कोर्ट कचहरी के मामले जल्द हल होते हैं और विवाद समाप्त होता है.
  • 9 साल – देवी दुर्गा का रूप होती हैं 9 साल की कन्या. कष्ट, दोष से मुक्ति पाने के लिए इस उम्र की कन्या की पूजा करें. इससे परलोक की प्राप्ति होगी.
  • 10 साल – इन्हें सुभद्रा कहा गया है. इनकी पूजा से बिगड़े काम बज जाते हैं. सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं.

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