जगदीप धनखड़ ने तंज कसा, सनातन और हिंदू के जिक्र भर से ही भटकती आत्माएं चौंक जाती हैं…
जो लोग शब्दों की गहराई और उनके गहरे अर्थ को समझे बिना ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, वे खतरनाक ईको सिस्टम द्वारा संचालित गुमराह आत्माएं हैं. NewDelhi : देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनकी सनातन और हिंदू के जिक्र भर से चौंकाने वाली प्रतिक्रिया आती है. ये गुमराह लोग हें. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आज […]
जो लोग शब्दों की गहराई और उनके गहरे अर्थ को समझे बिना ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, वे खतरनाक ईको सिस्टम द्वारा संचालित गुमराह आत्माएं हैं.
NewDelhi : देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनकी सनातन और हिंदू के जिक्र भर से चौंकाने वाली प्रतिक्रिया आती है. ये गुमराह लोग हें. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आज शुक्रवार को जेएनयू में आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेदांत कांग्रेस को संबोधित कर रहे थे. उपराष्ट्रपति ने इस क्रम में अफसोस जताया कि भारत में सनातन और हिंदू के जिक्र भर से गुमराह लोग चौंकाने वाली प्रतिक्रिया देने लगते हैं. कहा कि जो लोग शब्दों की गहराई और उनके गहरे अर्थ को समझे बिना ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, वे खतरनाक ईको सिस्टम द्वारा संचालित गुमराह आत्माएं हैं.
ऐसे व्यक्ति खतरनाक पारिस्थितिकी तंत्र से संचालित होते हैं
श्री धनखड़ ने कहा कि यह पीड़ा का विषय है. उन्होंने कहा, ऐसे व्यक्ति खतरनाक पारिस्थितिकी तंत्र से संचालित होते हैं जो न केवल समाज के लिए बल्कि खुद के लिए भी खतरा है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे समय में जब वैश्विक विधाएं वेदांत दर्शन को अपना रही हैं, आध्यात्मिकता की इस भूमि में कुछ लोग वेदांत और सनातनी ग्रंथों को प्रतिगामी कहकर खारिज कर देते हैं. खारिज करने की यह प्रवृत्ति अक्सर विकृत, औपनिवेशिक मानसिकता, हमारी बौद्धिक विरासत की अक्षम समझ से उपजी है. ऐसे तत्व व्यवस्थित और भयावह तरीके से काम करते हैं
आज देश को हमारे वेदांत की जरूरत है, जो समावेश की बात करता है
जगदीप धनखड़ ने कहा कि कुछ लोग ऐसे हैं, जो इन शब्दों का अर्थ समझने की कोशिश तक नहीं करते हैं. बस उन्हें प्रतिक्रिया देनी आती है. कहा कि आज भले ही दुनिया में तकनीक का विस्तार तेजी से हो रहा है, लेकिन यही वक्त है, जब हमें अपनी जड़ों की ओर दोबारा लौटना होगा. उन्होंने कहा, हमारे देश को आज हमारे वेदांत की जरूरत है, जो समावेश की बात करता है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी देश का स्थायी विकास तभी संभव है, जब वहां शांति और स्थिरता रहे. कहा कि ऐसा माहौल सनातन और वेदांत के साथ ही हो सकता है. हमारा वेदांत संवाद की बात करता है. यदि आप संवाद ही नहीं करेंगे तो फिर किसी मसले का हल होना कैसे संभव हो सकता है.
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