धर्म से भी ऊपर है  भारतीयता… मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से ऊपर है कानून : केरल हाइकोर्ट

  Thiruvanathapuram : केरल हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भी ऊपर है. बेंच ने हाल ही में पलक्कड़ में एक बाल विवाह के मामले में आरोपी की याचिका को खारिज कर दी. कहा कि बाल विवाह विरोधी नियम 2006, बिना किसी धार्मिक भेदभाव […] The post धर्म से भी ऊपर है  भारतीयता… मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से ऊपर है कानून : केरल हाइकोर्ट appeared first on lagatar.in.

Jul 28, 2024 - 17:30
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धर्म से भी ऊपर है  भारतीयता… मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से ऊपर है कानून : केरल हाइकोर्ट

  Thiruvanathapuram : केरल हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भी ऊपर है. बेंच ने हाल ही में पलक्कड़ में एक बाल विवाह के मामले में आरोपी की याचिका को खारिज कर दी. कहा कि बाल विवाह विरोधी नियम 2006, बिना किसी धार्मिक भेदभाव के समान रूप से सभी भारतीयों पर लागू होता है. जस्टिस पी वी कुन्निकृष्णणन ने यह भी कहा कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भी ऊपर है, जिसमें बच्चों की शादी को मान्यता दी जाती  है.

न्यायालय ने आरोपी पिता और कथित पति की याचिका खारिज कर दी

न्यायालय ने आरोपी पिता और कथित पति की याचिका खारिज कर दी. याचिका में कहा गया था कि  उनके विरुद्ध दायर केस रद्द कर दिया जाये. कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है,  जबकि भाजपा शासित असम में  अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बाल विवाह करवाते गिरफ्तार किये गये हैं.

बाल विवाह विरोधी कानून पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ है

याचिकाकर्ताओं ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हवाले से कहा था कि कोई भी मुस्लिम लड़की अगर प्यूबर्टी तक पहुंच जाती है तो पर्सनल लॉ बोर्ड के हिसाब से वह शादी के लिए तैयार है.  केंद्र उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता. कहा कि बाल विवाह विरोधी कानूनपर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ है. बोर्ड के अधिकारों का हनन कर रहा है.

बाल विवाह रोकना आधुनिक समाज का हिस्सा है

लेकिन हाइकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज कर दी. कहा कि यह कानून किसी पर्सनल लॉ बोर्ड या किसी भी धर्म से भी ऊपर है देश में और देश के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों को भी यह नियम मानना होगा. जस्टिस कृष्णणन ने कहा कि बाल विवाह रोकना आधुनिक समाज का हिस्सा है. यह कहीं से भी जायज नहीं है कि एक बच्चे कि शादी कर दी जाये. यह उस बच्चे के मानवीयअधिकारों का उल्लंघन है.  बच्चों को पढ़ने,घूमने दिया जाये.

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