सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, राष्ट्रपति के कार्य न्यायिक समीक्षा के अधीन, विधेयकों पर निर्णय के लिए तय कर दी डेडलाइन
NewDelhi : राष्ट्रपति के पास पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है. वे अनिश्चितकाल तक अपने निर्णय को लंबित नहीं रख सकते. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में यह कहा है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने अपने एक फैसले में अनुच्छेद 201 के तहत […]

NewDelhi : राष्ट्रपति के पास पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है. वे अनिश्चितकाल तक अपने निर्णय को लंबित नहीं रख सकते. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में यह कहा है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने अपने एक फैसले में अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किये गये कार्य न्यायिक समीक्षा के अधीन करार दिया. इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे
VIDEO | On SC setting time frame for State Governors to decide on Bills, Rajya Sabha MP and SC Bar Association President Kapil Sibal (@KapilSibal) says, “The SC has recently pronounced a historic judgement. It is in discussion because since when the BJP govt has come to power,… pic.twitter.com/i0ZXfWDcg5
— Press Trust of India (@PTI_News) April 12, 2025
राज्यपाल द्वारा भेजे गये विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य होगा. मामला यह है कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने लंबित विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए तमिलनाडु के राज्यपाल के फैसला रद्द कर दिया. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया था, जिसे शुक्रवार को सार्वजनिक किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 201 के अनुसार, जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो राष्ट्रपति को या तो उस पर सहमति देनी होती है या असहमति जतानी होती है. हालांकि, संविधान में इस प्रक्रिया के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गयी है.
सुप्रीम कोर्ट कहा, कानून की यह स्थिति स्थापित है कि यदि किसी प्रावधान में कोई समयसीमा निर्दिष्ट नहीं है, तब भी वह शक्ति एक उचित समय के भीतर प्रयोग की जाये. अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों का प्रयोग कानून के इस सामान्य सिद्धांत से अछूता नहीं कहा जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि तीन माह से ज्यादा देर होती है तो उसके उचित कारण दर्ज किये जाने चाहिए और संबंधित राज्य को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार राज्यपाल द्वारा विचारार्थ भेजे गये विधेयकों पर राष्ट्रपति को उस संदर्भ की प्राप्ति की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, यदि निर्धारित समयसीमा के भीतर कोई कार्रवाई नहीं होती तो संबंधित राज्य अदालत जा सकते हैं, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि कोई विधेयक उसकी संवैधानिक वैधता के कारण रोका जाता है तो कार्यपालिका को अदालत की भूमिका नहीं निभानी चाहिए.
ऐसे मामलों को अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट के पास भेजा जाना चाहिए. अदालत ने स्पष्ट किया कि जब किसी विधेयक में सिर्फ कानूनी मुद्दे शामिल हों, तब कार्यपालिका के हाथ बंधे होते हैं और सिर्फ संवैधानिक अदालतों को ही ऐसे मामलों पर अध्ययन कर सुझाव देने का अधिकार है.
जान लें कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उस समय आया, जब कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने द्रमुक सरकार द्वारा पारित 10 विधेयकों को मंजूरी न देकर गैरकानूनी कार्य किया. अदालत ने राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय करते हुए कहा कि किसी प्रकार की निष्क्रियता भी न्यायिक समीक्षा के तहत आयेगी
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