झारखंड पुलिस के अफसरों ने सरकार को अरबों का कराया नुकसान, जानें कैसे…
Saurav Singh Ranchi : झारखंड पुलिस के अफसरों की वजह से राज्य सरकार को पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से अरबों का नुकसान उठाना पड़ा है. दरअसल केंद्र सरकार से मिलने वाले सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) फंड से झारखंड पुलिस ने कई जिलों में किराये पर चार पहिया वाहन लिया. इसका इस्तेमाल नक्सल अभियान, […] The post झारखंड पुलिस के अफसरों ने सरकार को अरबों का कराया नुकसान, जानें कैसे… appeared first on lagatar.in.
Saurav Singh
Ranchi : झारखंड पुलिस के अफसरों की वजह से राज्य सरकार को पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से अरबों का नुकसान उठाना पड़ा है. दरअसल केंद्र सरकार से मिलने वाले सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) फंड से झारखंड पुलिस ने कई जिलों में किराये पर चार पहिया वाहन लिया. इसका इस्तेमाल नक्सल अभियान, विधि व्यवस्था और अफसरों के आने-जाने को लेकर किया गया. लेकिन इस दौरान मोटर अधिनियम का खुलेआम उल्लंघन किया गया. नियम के अनुसार, सरकारी कार्यालयों में किराये और लीज पर चलने वाले सभी वाहनों का कॉमर्शियल निबंधन होना चाहिए. साथ ही उस पर पीला नंबर प्लेट लगाना अनिवार्य है. लेकिन झारखंड पुलिस ने जितने भी किराये पर चार पहिया वाहन लिये थे, उसमें से अधिकतर वाहनों में पीले नंबर प्लेट की जगह प्राइवेट नंबर वाले सफेद प्लेट लगे थे. इसको लेकर झारखंड पुलिस अफसरों ने कोई आपत्ति भी नहीं जतायी और वाहन के मालिक ने टैक्स बचाने के लिए बिना कमर्शियल नंबर के वाहनों को किराये पर लगा दिया.
क्या है एसआरई फंड
एसआरई फंड केंद्र सरकार की ओर से नक्सलवाद और उग्रवाद प्रभावित राज्यों को उपलब्ध करायी जाती है. ताकि परिवहन, संचार, वाहनों को किराये पर लेना, आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को स्टाइपेंड देना और सुरक्षा बलों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसे सुरक्षा संबंधी व्यय की भरपाई की जा सके. दरअसल राज्यों की ओर से धन मिलने में देरी होने की वजह से जवानों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में काफी विलंब हो जाता था. इसीलिए केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया है. गौरतलब है कि एसआरई फंड उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में पुलिस बल को साधन सुविधा उपलब्ध कराने के लिए भी खर्च किया जाता है.
एसआरई फंड से होता है ये काम :
- – उग्रवादी हिंसा में मारे गये नागरिकों/सुरक्षाबल के परिवारों को अनुग्रह राशि का भुगतान करना के लिए.
- – सरेंडर करने वाले नक्सली को मुआवजा देने के लिए.
- – फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन के निर्माण के लिए.
- – सिविक एक्शन प्रोग्राम के लिए.
- – उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सड़क निर्माण के लिए.
- – नक्सल विरोधी अभियानों में हेलीकॉप्टर मुहैया कराने के लिए.
- – चार पहिया और दो पहिया वाहन के लिए.
- – पुलिस पिकेट बनाने के लिए.
- – उग्रवाद प्रभावित राज्यों में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की तैनाती के लिए.
झारखंड में सिर्फ पांच जिला नक्सल प्रभावित
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने झारखंड में नक्सल प्रभावित जिलों के आधार पर श्रेणीकरण कर राज्य सरकार को रिपोर्ट भेजी थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड में अब पांच जिले ही नक्सल प्रभावित रह गये हैं. इनमें गिरिडीह, गुमला, लातेहार, लोहरदगा और पश्चिमी सिंहभूम का नाम शामिल है. वहीं देश के पांच राज्यों के 12 सबसे अधिक नक्सल प्रभावित जिलों की श्रेणी में झारखंड का सिर्फ पश्चिमी सिंहभूम जिला का नाम शामिल है.
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