लोहरदगा : प्रकृति की गोद से उपजी है आदिवासियों की संस्कृति- सुनीता उरांव
Lohardaga : झारखंड पीपुल्स पार्टी महिला प्रकोष्ठ की लोहरदगा जिला अध्यक्ष सुनीता उरांव ने कहा कि आदिवासियों की संस्कृति प्रकृति की गोद से उपजी है. यही वजह है कि आदिवासियों के कर्मा, सरहुल जैसे पर्व-त्योहार व धार्मिक अनुष्ठान जल, जंगल, नदी, पहाड़, पेड़-पौधों व पशु-पक्षियों के जीवन से जुड़े हैं. लोगों को करम पर्व की […] The post लोहरदगा : प्रकृति की गोद से उपजी है आदिवासियों की संस्कृति- सुनीता उरांव appeared first on lagatar.in.
Lohardaga : झारखंड पीपुल्स पार्टी महिला प्रकोष्ठ की लोहरदगा जिला अध्यक्ष सुनीता उरांव ने कहा कि आदिवासियों की संस्कृति प्रकृति की गोद से उपजी है. यही वजह है कि आदिवासियों के कर्मा, सरहुल जैसे पर्व-त्योहार व धार्मिक अनुष्ठान जल, जंगल, नदी, पहाड़, पेड़-पौधों व पशु-पक्षियों के जीवन से जुड़े हैं. लोगों को करम पर्व की बधाई देते हुए उन्होंने समाज की उत्पत्ति पर भी प्रकाश डाला. कहा कि उरांव जनजाति के लोग प्रोटो ऑस्ट्रिया प्रजाति के माने जाते हैं और द्रविड़ समुदाय से आते हैं. हमारे पूर्वज सबसे पहले दक्षिण भारत में निवास करते थे. कालांतर में सामाजिक व राजनीतिक उथल-पुथल के बाद वे सिंधु घाटी की ओर चले गए. इसलिए सिंधु घाटी सभ्यता से भी समाज का जुड़ाव माना जाता है. कहा कि हमारे प्रमुख देवता महादेव शिव हैं, जिन्हें धर्मेश के नाम से पूजा जाता है. इनके अलावा हम अन्य देवी-देवता, पूर्वजों व आत्माओं की भी पूजा करते हैं. कर्मा पर्व पर करम पेड़ की डाली और सरहुल पर्व पर साल-सखुवा के फूल की पूजा करना हमारी परंपरा व पूजा पद्धति में शामिल है.
उन्होंने कहा कि उरांव जनजाति के लोगों की सामाजिक शासन व्यवस्था के प्रमुख महतो और पहान-पुजार होते हैं. रोहतासगढ़ से हमारी शासन व्यवस्था कायम होती रही है. धूम कुड़िया का हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है. उरांव जनजाति में कुल 14 गोत्र लकड़ा, रफंडा, गारी, बांडी, किस्पोट्टा, तिर्की, टोप्पो, एक्का, खलखो, लिंडा, मिंज, कुजूर, बेक शामिल हैं. ये सभी गोत्र किसी न किसी पशु-पक्षी के नाम से जुड़े हैं. एक गोत्र में कभी शादी-विवाह नहीं होता है. मां के गोत्र में भी तीन पीढ़ी शादी विवाह वर्जित है. उन्होंने कहा कि उरांव शब्द का अर्थ होता है घूमना. उरांव जनजाति अपना जीवन एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते हुए बिताया करती थी. शिकार करना समुदाय का पेशा था जो बाद में चलकर कृषि में परिवर्तित हो गया. वर्तमान समय में उरांव जनजाति के लोग झारखंड, बिहार, असम, बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में बड़ी संख्या में निवास करते हैं. नदी, पहाड़, जल, जंगल, पेड़-पौधे व पशु-पक्षी से अटूट संबंध रखते हुए अपनी सभ्यता व संस्कृति की रक्षा के लिए सदैव समर्पित रहते हैं.
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