संकट में पर्यावरण : झारखंड के जंगलों में 13.45 फीसदी आग की घटनाएं बढ़ी
मानव गतिविधियों के कारण जल रहे जंगल वनस्पतियों की विविधता पर पड़ रहा नकारात्मक प्रभाव Piyush Gautam Ranchi : झारखंड के जंगलों में आग की बढ़ती घटनाएं एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या के रूप में उभरती जा रही है. इससे वन्यजीव, वनस्पति और मानव समुदाय तेजी से प्रभावित हो रहे हैं. झारखंड में आग लगने की […]
- मानव गतिविधियों के कारण जल रहे जंगल
- वनस्पतियों की विविधता पर पड़ रहा नकारात्मक प्रभाव
Piyush Gautam
Ranchi : झारखंड के जंगलों में आग की बढ़ती घटनाएं एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या के रूप में उभरती जा रही है. इससे वन्यजीव, वनस्पति और मानव समुदाय तेजी से प्रभावित हो रहे हैं. झारखंड में आग लगने की सबसे अधिक घटनाएं आमतौर पर अप्रैल महीने में देखी जाती है. भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में अप्रैल महीने में राज्य के जंगलों में आग लगने की कुल घटनाओं में 16.12 फीसदी वृद्धि दर्ज की गयी है.
पश्चिमी सिंहभूम के जंगलों में सबसे अधिक अगलगी की घटनाएं
अप्रैल 2023 में कुल 4653 आग लगने की घटनाएं हुई थीं, जो अप्रैल 2024 तक बढ़कर 5547 पर पहुंच गयी. वहीं मई 2023 में जंगल में आग लगने की कुल 1389 घटनाएं दर्ज की गयी थीं, जो इस वर्ष बढ़कर 1434 तक पहुंच गयी है. इस वर्ष अप्रैल व मई महीने में कुल मिलाकर अगलगी की 6981 घटनाएं दर्ज की गयीं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13.45 फीसदी अधिक है. सबसे अधिक आग लगने की 1980 घटनाएं पश्चिमी सिंहभूम जिले में हुई हैं. इसके बाद लातेहार में 692, पूर्वी सिंहभूम में 434, हजारीबाग में 384 और सरायकेला में 317 घटनाएं दर्ज की गयी हैं.
23 वर्षों में आग से 614 हेक्टेयर वनों को नुकसान
वर्ष 2010 में झारखंड में 263 हजार हेक्टेयर प्राकृतिक वन थे, जो राज्य की कुल भूमि क्षेत्रफल का चार फीसदी था. वहीं वर्ष 2023 में 197 हेक्टेयर प्राकृतिक वन खो दिये, जिसके कारण लगभग 193 हजार टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ. वनों का नुकसान जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में चिंताजनक है, क्योंकि वनों का संरक्षण पृथ्वी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. वर्ष 2001 से 2023 के बीच झारखंड ने आग लगने के कारण 614 हेक्टेयर और अन्य कारणों से 5.37 हजार हेक्टेयर वनों को खो दिया.
प्राकृतिक निवास स्थानों से पलायन कर रहे वन्यजीव
आग के कारण वन्यजीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं, जिससे वन्यजीवों को अपने प्राकृतिक निवास स्थानों से पलायन करना पड़ रहा है. इसके अलावा, वनस्पतियों की विविधता पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जो जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. झारखंड में जंगलों की आग के पीछे कई कारण हैं. उच्च तापमान और शुष्क मौसम की स्थितियां आग लगने के लिए अनुकूल होती हैं. इसके अलावा, ग्रामीणों द्वारा महुआ फूल संग्रह की प्रथा, जिसमें आग लगाकर फूलों को गिराया जाता है. वहीं लोगों की लापरवाही भी जंगलों में आग लगने के प्रमुख कारणों में से एक है.
सरकार के साथ सामुदायिक भागीदारी भी जरूरी
समस्या का समाधान करने के लिए राज्य सरकार और वन विभाग को आग प्रबंधन की रणनीतियों को मजबूत करना होगा. आग से बचाव के लिए जागरुकता अभियान, आग बुझाने के उपकरणों की उपलब्धता और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए नीतियों का क्रियान्वयन आवश्यक है. ग्रामीणों को वन संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करना और उन्हें वन संसाधनों के सतत उपयोग के लिए प्रोत्साहित करना भी जरूरी है. जंगलों की आग एक बड़ी चुनौती है, जिसका समाधान केवल सरकारी प्रयासों से ही नहीं, बल्कि समुदायों की सक्रिय भागीदारी से ही संभव है.
अप्रैल-मई माह में किस जिले में कितनी आग लगने की हुई घटनाएं
जिला | अप्रैल 2023 | मई 2023 | अप्रैल 2024 | मई 2024 |
बोकारो | 112 | 25 | 205 | 47 |
धनबाद | 37 | 09 | 134 | 54 |
दुमका | 22 | 01 | 159 | 06 |
पूर्वी सिंहभूम | 42 | 10 | 387 | 47 |
गढ़वा | 67 | 116 | 178 | 58 |
गोड्डा | 49 | 08 | 253 | 10 |
हजारीबाग | 397 | 85 | 317 | 67 |
जामताड़ा | 07 | 00 | 10 | 02 |
खूंटी | 102 | 19 | 64 | 31 |
लातेहार | 398 | 344 | 444 | 248 |
पाकुड़ | 07 | 00 | 44 | 01 |
पलामू | 196 | 68 | 225 | 33 |
रामगढ़ | 42 | 19 | 69 | 22 |
रांची | 154 | 59 | 172 | 72 |
साहेबगंज | 89 | 03 | 182 | 17 |
सरायकेला | 67 | 11 | 255 | 62 |
प. सिंहभूम | 1482 | 230 | 1554 | 426 |
—-
What's Your Reaction?