रांची: आपातकाल देश के इतिहास का सबसे काला अध्यायः प्रतुल 

Ranchi: भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रेस वार्ता पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने 25 जून 1975 को संविधान की हत्या का प्रयास किया था. देश के सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकार छीन लिए गए थे.आज झारखंड मुक्ति मोर्चा को इमरजेंसी की तिथि को संविधान हत्या […]

Jul 14, 2024 - 05:30
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रांची: आपातकाल देश के इतिहास का सबसे काला अध्यायः प्रतुल 

Ranchi: भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रेस वार्ता पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने 25 जून 1975 को संविधान की हत्या का प्रयास किया था. देश के सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकार छीन लिए गए थे.आज झारखंड मुक्ति मोर्चा को इमरजेंसी की तिथि को संविधान हत्या दिवस मनाने पर इतनी मिर्ची लग रही है कि वह बौखला गई है. प्रतुल ने कहा यह दरअसल सिर्फ और सिर्फ सत्ता में बने रहने का लोभ है जो झारखंड मुक्ति मोर्चा को उसके पुराने इतिहास को भी भूलने को मजबूर कर रहा है. प्रतुल ने आश्चर्य व्यक्त किया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा आज यह भूल गया है कि शिबू सोरेन इसी इमरजेंसी के दौर में सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ जंगलों में छिपकर आंदोलन किया करते थे.

आरएसएस प्रमुख की गिरफ्तारी हो गई

प्रतुल ने कहा कf प्रेस की स्वतंत्रता की फर्जी दुहाई देने वाला झारखंड मुक्ति मोर्चा इमरजेंसी के उसे काले दौरा को भूल गया जब अखबारों के प्रथम पृष्ठ को केंद्र सरकार का पीआरडी डिपार्मेंट अप्रूव करता था. तब वह छपते थे. प्रतुल ने कहा बिना बेल के प्रोविजन वाले मीसा कानून के अंतर्गत लाखों राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी और पत्रकारों को वर्षों तक जेल में बंद करके रखा गया. आरएसएस जैसे सामाजिक संगठनों को टारगेट किया गया और उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. आरएसएस प्रमुख की गिरफ्तारी हो गई. जुडिशरी को भी बड़े पैमाने पर टारगेट किया गया. तीन सबसे सीनियर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वरीयता को नजरअंदाज करते हुए वरीयता क्रम में चौथे वरीय न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया.

पूरे देश में भय और दहशत का माहौल व्याप्त था

प्रतुल ने कहा कि सिर्फ सत्ता और सुविधा की राजनीति के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा इस बात को भूल रहा है कf इमरजेंसी के उस दौर में जबरन पुरुषों की नसबंदी कराई गई. पूरे देश में भय और दहशत का माहौल व्याप्त था. कहने को तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी लेकिन परोक्ष रूप से सरकार उनके पुत्र संजय गांधी चलाया करते थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा को यह बात स्मरण नहीं कि 1975 का आपातकाल इंदिरा गांधी ने सिर्फ अपनी कुर्सी को बचाने के लिए लगाया था, जब उनकी सदस्यता इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रद्द कर दी थी. स्पष्ट है उसके लिए लूट, भ्रष्टाचार और सत्ता ही प्राथमिकता है.  इसी इमरजेंसी के काले दौर के दौरान 42वें संशोधन को लागू करके इंदिरा गांधी ने राज्य सरकार, सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय की शक्तियों में कटौती करके सारी शक्तियां पीएमओ में निहित कर लिया था. प्रतुल ने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सभी राजनीतिक मर्यादा और सुचिता को छोड़ते हुए आज इमरजेंसी को संविधान हत्या दिवस मानने से इंकार किया. प्रजातांत्रिक मूल्यों का झारखंड मुक्ति मोर्चा में कोई स्थान नहीं.

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