रुपया रिकॉर्ड लो पर, 10 सालों में 26.30 रुपये गिरा, 1947 से अबतक 83.20 रुपये की आयी कमी
जानें रुपये की गिरावट के आर्थिक प्रभाव LagatarDesk : भारतीय करेंसी रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड लो पर पहुंच गया. करेंसी मार्केट के डाटा के अनुसार, रुपये में सोमवार को 58 पैसे टूटकर 86.62 के लेवल पर बंद हुआ. पिछले दो साल में यह एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट थी, जो […]
जानें रुपये की गिरावट के आर्थिक प्रभाव
LagatarDesk : भारतीय करेंसी रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड लो पर पहुंच गया. करेंसी मार्केट के डाटा के अनुसार, रुपये में सोमवार को 58 पैसे टूटकर 86.62 के लेवल पर बंद हुआ. पिछले दो साल में यह एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट थी, जो इस बात का संकेत है कि वैश्विक आर्थिक कारक, जैसे अमेरिकी करेंसी की मजबूती और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, रुपये की कीमत को प्रभावित कर रहे हैं.
दस सालों में डॉलर की तुलना में रुपये का मूल्य 43.60 फीसदी हुआ कम
पिछले एक दशक के आंकड़े पर गौर करें तो रुपया में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारी गिरावट आयी है. अप्रैल 2014 में डॉलर के मुकाबले में रुपये 60.32 के लेवल पर था, जबकि वर्तमान में यह 86.62 के नये रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच चुका है. इसका अर्थ है कि पिछले दस वर्षों में डॉलर की तुलना में रुपये का मूल्य 43.60 फीसदी (यानी 26.30 रुपये) कम हो चुका है. अगर बीते एक साल के आंकड़े पर गौर करें तो डॉलर के मुकाबले, रुपये में 4.30 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखने को मिल चुकी है. वहीं एक माह में डॉलर में रुपये के मुकाबले में करीब 2 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है.
आजादी से अबतक डॉलर के मुकाबले रुपये में इतनी आयी गिरावट
1947 में डॉलर की तुलना में रुपये का मूल्य 3.30 था, जो 2025 में 86.50 रुपये हो गया. इसका मतलब है कि 78 सालों में रुपये का मूल्य 83.20 रुपये कम हुआ है.
साल |
डॉलर के मुकाबले रुपया |
1947 |
3.30 रुपये |
1966 |
7.50 रुपये |
1980 |
6.61 रुपये |
1990 |
17.01 रुपये |
2000 |
44.71 रुपये |
2007 |
49.32 रुपये |
2010 |
46.02 रुपये |
2015 |
66.79 रुपये |
2020 |
74.31 रुपये |
2025 |
86.50 रुपये |
भारतीय इकोनॉमी के साथ-साथ आम जनता पर पड़ेगा असर
रुपया में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आयी यह गिरावट केवल सांकेतिक नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिरता और वैश्विक बाजारों में भारत की स्थिति को भी दर्शाती है. रुपये के मुकाबले डॉलर के बढ़ने से भारत की इकोनॉमी को काफी नुकसान हो रहा है. साथ ही इसका असर आम आदमी के जीवन पर भी देखने को मिलेगा. डॉलर में इजाफे से जहां देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आयेगी और इंपोर्ट बिल में इजाफा होगा. वहीं दूसरी ओर देश में विदेशी सामान महंगा होगा और देश में महंगाई बढ़ेगी. खासकर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा देखने को मिलेगा. साथ ही विदेशों पढ़ाई महंगी हो जायेगी.
रुपए में गिरावट का भारत पर प्रभाव
- इंपोर्ट बिल में बढ़ोतरी : डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ जायेगा. यानी भारत को किसी सामान को खरीदने के लिए अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा.
- कच्चे तेल की लागत बढ़ेगी : भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल बाहर से इंपोर्ट करता है रुपए की गिरावट से कच्चे तेल की लागत में बढ़ोतरी होगी, जो अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डालेगी.
- पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी : रुपए की गिरावट और डॉलर की मजबूती के चलते कच्चा तेल महंगा होगा, जिससे पेट्रोल और डीजल के उत्पादन की लागत बढ़ जायेगी. इसके परिणामस्वरूप इन ईंधनों की कीमतों में इजाफा होगा.
- इंपोर्टेड सामान महंगा होगा : डॉलर के मुकाबले रुपये के गिरने से विदेशों से आने वाले सामान, जैसे कपड़े, जूते और विदेशी शराब, महंगे हो जायेंगे.
- विदेश में पढ़ाई महंगी : रुपए की गिरावट का सबसे बड़ा असर विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों पर पड़ेगा. उन्हें अब डॉलर खरीदने के लिए ज्यादा रुपए खर्च करने होंगे.
- विदेशी दवाएं महंगी होंगी : विदेशों से आने वाली दवाएं, विशेषकर कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों की, महंगी हो जायेंगी.
- दालें और खाने का तेल महंगा होगा : रुपए में गिरावट और डॉलर में मजबूती के चलते इंपोर्टेड दालें और खाने का तेल भी महंगे होंगे. इससे खाद्य महंगाई में बढ़ोतरी हो सकती है.
- विदेशी मुद्रा भंडार में कमी : रुपए की गिरावट से देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी घट रहा है. वहीं पिछले पांच हफ्तों में फॉरेक्स रिजर्व में लगातार कमी देखी जा रही है. तीन जनवरी को यह 5.69 अरब डॉलर कम होकर 634.58 अरब डॉलर रह गया था.
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