आकृति को छोड़कर प्रकृति के साथ चलने की जरूरतः सरना समिति

Ranchi: हरमु स्थित वीर बुधु भगत धुमकुड़िया भवन में रविवार को परिचर्चा हुई. धुमकुड़िया टीम के बैनर तले ”उरांव समाज का धार्मिक चिन्ह डंडा कटना एवं अदि चाला अयंड का विरुपण वर्तमान चुनौतियां और समाधान” विषय पर परिचर्चा हुई. इसमें साहित्यकार महादेव टोप्पो, प्रो रामचंद्र उरांव, कार्तिक उरांव कॉलेज गुमला से डॉ मनती कुमारी उरांव, […]

Dec 2, 2024 - 05:30
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आकृति को छोड़कर प्रकृति के साथ चलने की जरूरतः सरना समिति

Ranchi: हरमु स्थित वीर बुधु भगत धुमकुड़िया भवन में रविवार को परिचर्चा हुई. धुमकुड़िया टीम के बैनर तले ”उरांव समाज का धार्मिक चिन्ह डंडा कटना एवं अदि चाला अयंड का विरुपण वर्तमान चुनौतियां और समाधान” विषय पर परिचर्चा हुई. इसमें साहित्यकार महादेव टोप्पो, प्रो रामचंद्र उरांव, कार्तिक उरांव कॉलेज गुमला से डॉ मनती कुमारी उरांव, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा अध्यक्ष रवि तिग्गा, संजय गांधी कॉलेज के प्रो चौठी उरांव, जमशेदपुर से लक्ष्मण मिंज, शयाम प्रसाद मुखर्जी विश्व विद्यालय के डॉ अभय सागर मिंज, डॉ तेतरु उरांव, धरम अगुवा चारे भगत, संजु टोप्पो सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद उरांव, मेघा उरांव समेत शिवशंकर उरांव, सरिता उरांव शामिल थे. वक्ताओं ने कहा कि समाज की धार्मिक, आस्था, विश्वास और दर्शन समाज की सांस्कृतिक एवं धार्मिक रीढ़ होती हैं. जो सदियों से समाज के विभिन्न क्रियाकलापों में परिक्षित होती है. वर्तमान आधुनिक युग में आदिवासी समाज अन्य धर्मों की प्रतिक चिन्ह मान्यताओं से प्रभावित हुए हैं.

आदिवासी संस्कृति धर्म, परंपरा व धुमकुड़िया से ही बचा सकते

आदिवासी समाज अन्य धर्मों की नकल कर बाजार केंद्रीत होता जा रहा है. आज उरांव समाज में धार्मिक डंडा कटना चिह्न को तरह-तरह से बनाकर मनगढ़ंत व्याख्या किया जा रहा है. बाजार की मांग के अनुरूप अदि चाला अयंग या सरना मां का चित्र, फोटो फ्रेम और मूर्ति बनाये, बेचे और खरीदे जा रहे हैं. आज प्रकृति को अंगिकार करने की जरूरत है. तभी समाज को बचाया जा सकता है. आदिवासी संस्कृति धर्म, परंपरा धुमकुड़िया से ही बचा सकते हैं.

आदिवासी समाज का धार्मिक अगुवा पाहन होता है

सरना समिति से संजय कुजूर ने कहा कि उरांव समाज में जो मान्यताएं होती हैं वह संस्कार से होता है. धर्म को निभाने के लिए आचरण, लेग नियम को निभाया जाता है. आदिवासी समाज का धार्मिक अगुवा पाहन होता है. आज पाहन अपना कर्तव्य सही ढंग से नहीं निभा रहा है. वर्तमान पीढ़ी समाज को सुधार नहीं पाया तो आने वाले पीढ़ी को बचाना मुश्किल हो जाएगा. समाज के लिए जो निर्धारित होता है. वह सामाजिक रुप से होना चाहिए. आदिवासी समाज के युवाओं को निस्वार्थ भाव से प्रशिक्षण करने की जरूरत है. आकृति को छोड़कर प्रकृति के साथ चलने की जरूरत है. तभी आदिवासी समाज को मजबूत औऱ सशक्त बनाया जा सकता है.

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